एक बार एक
देवता ब्रह्माजी प्रसन्न
हो गए | उस
देवता को महृषि
दुर्वासा ने शाप
दे दिया था
की तू अब
देवता नहीं रहेगा
| देवता ने कहा
- न सही देवता
| मैं बहुत दिन
देवता रह चुका
| स्वर्ग के भोग
से ऊब गया
| उसने बूढ़े बाबा
ब्रह्मा जी ने
प्रसन्न होकर कहा
- तुम जो कहोगे,
तुमको वही बना
दिया जायेगा |
देवता ने पहले
कुछ देर सोचा
और फिर कहा
- एक बार मुझे
सब लोक देख
आने दीजिये
ब्रह्मा जी ने
स्वीकार कर लिया
| देवता भला देव
लोक में क्या
देखता | नाचने - गाने वाले
गन्धर्व, यक्ष, किन्नर - ये
सब तो उसके
सामने सेवक ही
थे | देवताओं के
राजा इंद्र का
नंदन नमक बगीचा
तथा पराजित नामक
पेड़ भी उसका
कई बार देखा
हुआ ही था
| वह गया ऊपर
के लोकों में
| उसने जनलोक, तपोलोक देखे
| इनसे आगे
मेहरलोक
और सत्यलोक भी
देख लिया | वैकुण्ठ,
साकेत, गोलोक और शिवलोक
जाने की उसे
आज्ञा नहीं थी
| उसने सोचा - इन लोकों
में ऋषि बनकर
रहने से तो
तपस्या करनी होगी,
भोग यहाँ है
नहीं | हमने जीवनभर
स्वर्ग के भोग भोगे
है | अब इस
बखेड़े में कौन
पड़े |
वह सीधे नीचे
चला पाताल की
और | उसने दैत्यों
के बल्कि बड़ी
प्रशंसा सुनी थी
| वह नाग लोक
को तो देखकर
ही डर गया
| बड़े भारी - भारी
सर्प थे वहां
| उसने दैत्यों को देखा,
वे काले, कुरूप
और उज्जड थे
| इतना कुरूप होना वह
नहीं चाहता था
| वह पृथ्वी पर
आ गया |
मैं पक्षी बनू तो
उड़ता फिरूंगा | चाहे
जहाँ के फल
खा सकूंगा
| वह सोच रहा
था | इतने में
उसने देखा हवाई
जहाज | ओह मनुष्य
- यह भी उड़ता
है | उसे डर
लगा की पक्षी
बनने पर कोई
मनुष्य गोली मार
देगा |
मैं जल में
रहूंगा | उसने सोचा
| परन्तु जल में
ऊपर जहाज और
भीतर पनडुब्बी चल
रही थी | मनुष्य
का भय यहाँ
भी था | जल
में भी एक
जीव दूसरे पर
आक्रमण ही करते
रहते है |
'हाथी, सिंह - सब बलवान
पशु उसने देखे
| मनुष्य सबको पकड़कर
बंद कर लेता
है | सबको सेवक
बना लेता है
| मनुष्य पृथ्वी पर रेल
और मोटर से
दौड़ता है | पानी
और हवा में
भी चलता है
| पानी, हवा और
बिजली से भी
काम लेता है
| हजारों कोसों की बात
उसी समय सुनता
है | गाना सुनता
है, वहां की
तस्वीर भी देख
लेता है | मनुष्य
बड़ा बुद्धिमान है
और सुंदर भी
है | वह सोचते
- सोचते लोटा वैकुण्ठ,
साकेत, गोलोक और शिवलोक
कैसे है और
उनमे क्या है
? उसने ब्रह्मा जी से
पूछा |
वे बड़े विचित्र
लोक है, वहां
यहाँ के सूरज
- चाँद का प्रकाश
नहीं है | वे
अपने ही तेज
से प्रकाशित है,
वहां भगवान तथा
उनके भक्त रहते
है वहां सदा
रहने वाला परम
सुख है तथा
नित्य सौंदर्य है,
वहां दुःख का
पता तक नहीं
| ब्रह्मा जी ने
बताया | देवता शीघ्रता से
बोलै - तब मैं
...........|
ब्रह्मा जी ने
उसे बोलने ही
नहीं दिया | वे
बीच में ही
कहने लगे - वहां
तो केवल मनुष्य
अपनी साधना और
भक्ति से ही
जा सकता है
|
तब मैं मनुष्य
बनूंगा | देवता ने झटपट
बता दिया | उसने
देखा था की
ब्रह्मा प्रसन्न न होते
तो वह कुछ
भी नहीं बन
सकता था और
मनुष्य तो देवता
भी बन जाता
है | ब्रह्मा जी
ने उसे मनुष्य
बनाकर बताया -
'नर तन
सम नाहि कवनिउ
देहि |'