दक्षिण अमेरिका की बात
है | उन दिनों
वहां सोने की
खान निकली थी
| दूर - दूर के
वयापारी और बहुत
- से मजदूर वहां
पहुंचे | यों ही
उपज बहुत कम
हुई थी, फिर
बाहर के बहुत
लोग पहुँच गए
| अकाल - सा पड़
गया | खाने - पहन
ने की चीज़ों
के दाम बहुत
बढ़ गए | लोग
सड़ी - गली वस्तुओं
से पेट भरने
लगे | ज्वर तो
पहले से फैला
था, हैजा भी
फैल गया |
पंडितों की सेवा
करने वाली प्रसिद्ध
संस्था 'मुक्ति - सेना' ने
अपना दल वहां
भेजा | उसकी संस्थापिका
स्वंय वहां पहुंची
| लोगों ने डाकुओं
का बहुत भय
बताया, परन्तु 'मुक्ति - सेना'
तो सेवा करने
आयी थी
उसका दल निर्भय
आगे बढ़ता गया
| पेड़ों के नीचे
तम्बू पड़े थे
और उनके चिकित्स्क
रोगियों की सेवा
में लगे थे
| एक दिन एक
सहस्त्र घुड़सवार आया | उसने
उस सेवा - दल
की संस्थापिका को
एक पत्र दिया
और एक बढ़िया
कम्बल | उस समय
वहां एक अच्छा
कम्बल बहुत बड़ी
बात थी | वह
सवार पत्र का
उत्तर लेकर लौट
गया |
दूसरे दिन एक
सुंदर युवक घोड़े
पर आया | वह
उस महिमायी नारी
के आगे घुटनो
के बल बैठ
गया | उसने कहा
- आपने मेरा कम्बल
स्वीकार कर के
मुझ पर बड़ी
किरपा की | जो
सबकी सेवा में
लगा है, उसने
इस अधम को
अपनी एक नन्ही
सेवा का अवसर
तो दिया |
महिला ने कहा
- क्या तुम मेरे
साथ परमेश्वर की
प्रार्थना में सम्मिलित
होना पसंद करेंगे
?
वह तुरंत तैयार हो
गया | लोग जिसे
पत्थर के हिरदये
का पिशाच समझते
थे, वह उस
दिन प्रार्थना में
बच्चो की भांति
फुट - फूटकर रोया
| वही उन डाकुओं
का प्रधान अधक्षय
था |
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