यह तो बड़ा
भयानक नरक है
|' महाराज युधिषिठर को
धर्मराज के दूत
नर्क दिखला रहे
थे | महाराज युधिषिठर
ने केवल एक
बार आधा झूट
कहा था की
'अश्वथामा मर गया,
मनुष्य नहीं हाथी
|' सत्य को इस
प्रकार घुमा - फिराकर बोलने
के कारण उन्हें
नरक को केवल
देख लेने का
दंड मिला था
|
उन्होंने अनेक नरक
देखे | कही किसी
को बिच्छू - सर्प
काट रह थे
; कही किसी को
जीते - जी कुत्ते,
सियार या गीध
नोच रहे थे
; कोई आरे से
चीरा जा रहा
था और कोई
तेल में उबाला
जा रहा था
| इस प्रकार पापियों
को बड़े कठोर
दंड दिए जा
रहे थे |
युधिषिठर यमदूत से कहा
- 'ये तो बड़े
भयंकर दंड है
| कोण मनुष्य यहां
दंड पाते है
|
यमदूत नर्मता से कहा
- 'हाँ महाराज ! ये बड़े
भयंकर दंड है
| यहां केवल वे
ही मनुष्य आते
हैं, जो जीवों
को मारते हैं,
मांस खाते है,
दुसरो का हक
छीनते है तथा
और भी बड़े
पाप करते है
|'
लोग हाय - हाय कर
रहे थे | चिल्ला
रहे थे | पर
युधिष्ठिर के वहां
रहने से उनके
कष्ट मिट गए
; वे कहने लगे
- 'आप यहीं रुके
रहिये |' युधिष्ठिर वहीं रुक
गए | तब स्वयं
धर्मराज और इंद्र
ने आकर उनको
समझया और कहा
की आपने एक
बार छल भरी
बात कही थी,
उसी से आप
को इस रास्ते
से लाया गया
है | आपके कोई
परिचित या रिश्तेदार
यहां नहीं है
| जो मनुष्य - शरीर
धारण कर के
पाप करते हैं,
जीवों पर दया
नहीं करते, उलटे
दुसरो को पीड़ा
दिया करते है,
वे ही इन
नरको में आते
हैं |
महाराज युधिषिठर कुछ सोचा
| सम्भवतः वे स्मरण
कर रहे थे
की -
नर शरीर धरि
जे पर पीरा
|
करहिं ते सेहहिं
महा भव भीरा
||
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