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Saturday 4 November 2017

नरक की यात्रा

यह तो बड़ा भयानक नरक है |' महाराज युधिषिठर  को धर्मराज के दूत नर्क दिखला रहे थे | महाराज युधिषिठर ने केवल एक बार आधा झूट कहा था की 'अश्वथामा मर गया, मनुष्य नहीं हाथी |' सत्य को इस प्रकार घुमा - फिराकर बोलने के कारण उन्हें नरक को केवल देख लेने का दंड मिला था |

उन्होंने अनेक नरक देखे | कही किसी को बिच्छू - सर्प काट रह थे ; कही किसी को जीते - जी कुत्ते, सियार या गीध नोच रहे थे ; कोई आरे से चीरा जा रहा था और कोई तेल में उबाला जा रहा था | इस प्रकार पापियों को बड़े कठोर दंड दिए जा रहे थे |

युधिषिठर यमदूत से कहा - 'ये तो बड़े भयंकर दंड है | कोण मनुष्य यहां दंड पाते है |
यमदूत नर्मता से कहा - 'हाँ महाराज ! ये बड़े भयंकर दंड है | यहां केवल वे ही मनुष्य आते हैं, जो जीवों को मारते हैं, मांस खाते है, दुसरो का हक छीनते है तथा और भी बड़े पाप करते है |'

लोग हाय - हाय कर रहे थे | चिल्ला रहे थे | पर युधिष्ठिर के वहां रहने से उनके कष्ट मिट गए ; वे कहने लगे - 'आप यहीं रुके रहिये |' युधिष्ठिर वहीं रुक गए | तब स्वयं धर्मराज और इंद्र ने आकर उनको समझया और कहा की आपने एक बार छल भरी बात कही थी, उसी से आप को इस रास्ते से लाया गया है | आपके कोई परिचित या रिश्तेदार यहां नहीं है | जो मनुष्य - शरीर धारण कर के पाप करते हैं, जीवों पर दया नहीं करते, उलटे दुसरो को पीड़ा दिया करते है, वे ही इन नरको में आते हैं |
महाराज युधिषिठर कुछ सोचा | सम्भवतः वे स्मरण कर रहे थे की -

                      नर शरीर धरि जे पर पीरा |
                      करहिं ते सेहहिं महा भव भीरा ||

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