एक डॉक्टर साहब है
| खूब बड़े नगर
में रहते है
| उनके यहाँ रोगियों
की बड़ी भीड़
रहती है | घर
बुलाने पर उनको
फीस के बहुत
रूपये देने पड़ते
है | वे बड़े
प्रसिद्ध है | उनकी
दवा से रोगी
बहुत शीघ्र अच्छे
हो जाते है
| डॉक्टर साहब के
लिए प्रसिद्ध है
की कोई गरीब
उन्हें घर बुलाने
आवे तो वे
तुरंत अपने ताँगे
पर बैठकर देखने
चले जाते है
| उसे बिना दाम
लिए दवा देते
है और जरूरत
हुई तो रोगी
को दूध देने
के लिए पैसे
भी दे आते
है |
डॉक्टर साहब ने
बताया की उस
समय हमारे पिता
जीवट थे | मैंने
डॉक्टर की नई
- नई दुकान खोई
थी | पर, मेरी
डॉक्टरी अछि चल
गयी थी | एक
दिन दूर गाओं
से एक किसान
आया | उसने प्रार्थना
की की 'मेरी
औरत बहुत बीमार
है | डॉक्टर साहब
! चलकर उसे देख
आवे |'
डॉक्टर ने कहा
- 'इतनी दूर में
बिना बीस रूपये
लिए नहीं जा
सकता | मेरी फीस
यहां दे दो
और तांगा ले
आओ तो में
चलूँगा |'
किसान बहुत गरीब
था | उसने डॉक्टर
के पैरों पर
पांच रूपये रख
दिए | वह रोने
लगा और बोलै
- 'मेरे पास और
रूपये नहीं हैं
| आप मेरे घर
चले | में तांगा
ले अत हूँ
| आपके पंद्रह रूपये फसल
होने पर अवस्य
दे जाऊंगा |
डॉक्टर साहब ने
उसे फटकार दिया
| रूपये फेक दिए
और कहा - 'मैंने
तुम - जैसे भीकमंगो
के लिए डॉक्टरी
नहीं पढ़ी है
| मुझसे इलाज कराने
वाले को पहले
रुपयों का काम
कर के मेरे
पास आना चाहिए
| तुम - जैसों से बात
करने के लिए
हमारे पास समय
नहीं है |
किसान ने गिड़गिड़ाकर
रट हुए कहा
_ 'सर्कार ! में गांव
में किसी से
कर्ज लेकर जरूर
आपको रूपये दूंगा,
आप जल्दी चलिए
| मेरी औरत मर
जाएगी, सारे बच्चे
अनाथ हो जाएंगे
| मेरा घरवार चौपट हो
जाएगा |
किसान की बात
सुनकर डॉक्टर झुंझला
उठे और बोले
- 'जहनुम में जाए
तेरा घरवार
और बच्चे | पहले
रूपये ला और
फिर चलने की
बात कर |
उनके पिताजी छत पर
से सब सुन रहे
थे | उन्होंने डॉक्टर
साहब को पुकारा
| जैसे ही डॉक्टर
साहब पिता के
सामने गए, उनके
मुखपर एक थप्पड़
पड़ा | इतने जोर
का थप्पड़ की
हट्ठे - कट्ठे बेचारे डॉक्टर
चककर खाकर गिर
पड़े |
पिता जी ने
कहा - मैंने तुझे
इसलिए पढ़ाकर डॉक्टर
नहीं बनाया की
तू गरीबों के
साथ ऐसा बर्ताव
करेगा, उन्हें गालिआं बकेगा
और उनका गला
दबाएगा | जा, अभी
मेरे घर से
निकल जा और
तेरे पालने तथा
पढ़ाने में जितने
रूपये लगे हैं,
चुपचाप दे जा
! नहीं तो अभी
उस गरीब के
घर अपने ताँगे
में बैठकर जा
| उससे एक पैसा
भी दवा का
दाम लिया तो
में मिट्टी का
तेल डालकर तेरी
दुकान में आग
लगा दूंगा |' डॉक्टर
हाथ जोड़ लिए
| तब पिताजी कुछ
नरम होकर बोले
- 'तेरे ऐसे बर्ताव
से मुझे बड़ी
लज्जा आती है
| देख, यदि आज
बहु बीमार होती,
तेरे हाथ में
पैसे ने होते,
तू किसी डॉक्टर
के यहाँ जाता
और हाथ जोड़कर
उससे इलाज के
लिए प्रार्थना करता
और वह तुझे
जवाब में वही
बाते कहता, जो
तूने इस किसान
से कही हैं
| तो तेरे हिरदय
में कितना दुःख
होता | मनुष्ये को दूसरों
के साथ वही
बर्ताव करना चाहिए,
जो वह अपने
लिए चाहता हैं
| ऐसा करेगा तो
तू गरीबों का
आशीर्वाद पायेगा और फुले
- फलेगा |
बेचारे डॉक्टर साहब का
एक और मुख
फूल गया था
| उन्होंने सिर नवाकर
पिताजी की बात
मान ली और
चुपचाप दवा का
बक्स लेकर ताँगे
में उस किसान
को बैठकर चल
पड़े | वे कहते
है की 'किसी
गरीब रोगी के
आने पर मुझे
पिताजी की उस
मूर्तिका स्मरण हो आता
है और हाथ
तुरंत गाल पर
पहुंच जाता हैं
| और साथ ही
पिताजी का उपदेश
भी याद आ
जाता है | धन्य
थे मेरे वे
पिता |'
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