एक ग्राम में लड़का
रहता था | उसके
पिता ने उसे
पढ़ने कासी भेज
दिया | उसने पढ़ने
में परिश्रम किया
| ब्राह्मण का लड़का
था, बुद्धि तेज
थी | जब वह
कासी से अपने
ग्राम में लौटा
तब व्याकरण का
आचार्य हो गया
था | गांव में
दूसरा कोई पढ़ा
- लिखा था नहीं
| सब लोग उसका
आदर करते थे
| इससे उसका घमंड
बढ़ गया | एक
बार उस गांव
में बारात आयी
| बारात में दो
- तीन बूढ़े पंडित
थे | विवाह में
शास्त्रार्थ तो
होता ही है
| जब सब लोग
बैठे, तब शास्त्रार्थ की
बारी आयी |
सबसे पहले उस
घमंडी लड़के ने
ही प्रश्न किया
| पंडितों में से
एक ने उससे
पूछा - असभ्य किसे कहते
है ?
लड़के ने बड़े
रॉब से उत्तर
दिया - जो बड़ो
को आदर न
करे और उनके
सामने उदण्ड बर्ताव
करे |
आप यह भी
मान लेंगे की
असभ्य पुरुष से
बोलने वाला भी
असभ्य ही होता
है |
निस्चय ! लड़के ने
बड़े जोश से
स्वीकार किया |
तब में आपसे
बोलना बंद करता
हूँ | बूढ़े पंडित
मुस्कुरा पड़े |
अथार्थ? लड़का क्रोध
से लाल हो
उठा |
आपके पूज्य पिता तो
वहां पीछे बैठे
है और आप
यहाँ डटे है
| एक बार बुला
तो लेना था
उनको | पंडित जी ने
गुस्सा किया |
मैं आचार्य हूँ | लड़के
ने चिल्लाकर कहा
|
पंडित ने हस्ते
हुए कहा - आचार्य
होने से कोई
सभ्य नहीं हो
जाता | आपने अभी
बुद्धिमानो का साथ
नहीं किया |
लड़के का पिता
लड़के से अधिक
लज्जित हो रहा
था |
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