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Friday 10 November 2017

असभ्य आचार्य

एक ग्राम में लड़का रहता था | उसके पिता ने उसे पढ़ने कासी भेज दिया | उसने पढ़ने में परिश्रम किया | ब्राह्मण का लड़का था, बुद्धि तेज थी | जब वह कासी से अपने ग्राम में लौटा तब व्याकरण का आचार्य हो गया था | गांव में  दूसरा कोई पढ़ा - लिखा था नहीं | सब लोग उसका आदर करते थे | इससे उसका घमंड बढ़ गया | एक बार उस गांव में बारात आयी | बारात में दो - तीन बूढ़े पंडित थे | विवाह में शास्त्रार्थ  तो होता ही है | जब सब लोग बैठे, तब शास्त्रार्थ  की बारी आयी | 

सबसे पहले उस घमंडी लड़के ने ही प्रश्न किया | पंडितों में से एक ने उससे पूछा - असभ्य किसे कहते है ?
लड़के ने बड़े रॉब से उत्तर दिया - जो बड़ो को आदर करे और उनके सामने उदण्ड बर्ताव करे |
आप यह भी मान लेंगे की असभ्य पुरुष से बोलने वाला भी असभ्य ही होता है |

निस्चय ! लड़के ने बड़े जोश से स्वीकार किया |

तब में आपसे बोलना बंद करता हूँ | बूढ़े पंडित मुस्कुरा पड़े |

अथार्थ? लड़का क्रोध से लाल हो उठा |

आपके पूज्य पिता तो वहां पीछे बैठे है और आप यहाँ डटे है | एक बार बुला तो लेना था उनको | पंडित जी ने गुस्सा किया |

मैं आचार्य हूँ | लड़के ने चिल्लाकर कहा |

पंडित ने हस्ते हुए कहा - आचार्य होने से कोई सभ्य नहीं हो जाता | आपने अभी बुद्धिमानो का साथ नहीं किया |
लड़के का पिता लड़के से अधिक लज्जित हो रहा था |

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