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Friday 10 November 2017

संतोष का फल

विलायत में अकाल पड़ गया | लोग भूखो मरने लगे | एक छोटे नगर में एक धनी दयालु पुरुष थे | उन्होने सब छोटे लड़कों को प्रीतिदिन एक रोटी देने की घोषणा कर  दी | दूसरे दिन सबेरे एक बगीचें में सब लड़के इकहट्टे हुए उन्हें रोटियां बटने लगी |

रोटियां छोटी - बड़ी थी | सब बच्चे एक - दूसरे को धक्का देकर बड़ी रोटी पाने का प्रयत्न कर रहे थे | केवल एक छोटी लड़की एक और चुपचाप खड़ी थी | वह सबके अंत में आगे बढ़ी | टोकरे में सबसे छोटी अंतिम रोटी बची थी उसने उसे प्रसन्नता से ले लिया और वह घर चली आयी |

दूसरे दिन फिर रोटियां बांटी गयी | उस बेचारी लड़की को आज भी सबसे छोटी रोटी मिली | लड़की ने जब घर लौटकर रोटी तोड़ी तो रोटी में से सोने की एक मुहर निकली | उसकी माता ने कहा की - मुहर उस धनी को दे आओ | लड़की दौड़ी गयी मुहर देने |

धनी ने उसे देखकर पूछा - तुम क्यों आयी हों ?

लड़की ने कहा - मेरी रोटी में यह मुहर निकली है | आते में गिर गयी होगी | देने आयी हूँ | तुम अपनी मुहर ले लो |
धनी ने कहा - नहीं बेटी ! यह तुम्हारे संतोष का पुरुस्कार है |

लड़की ने सिर हिलाकर कहा - पर मेरे संतोष का फल तो मुझे तभी मिल गया था | मुझे धक्के नहीं खाने पड़े |
धनी बहुत प्रसन्न हुआ | उसने उसे अपनी धर्म पुत्री बना लिया और उसकी माता के लिए मासिक वेतन निश्चित क्र दिया | वही लड़की उस धनी की उत्तराधिकारी हुई |

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