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Sunday 19 November 2017

मैं मनुष्य बनूंगा

एक बार एक देवता ब्रह्माजी प्रसन्न हो गए | उस देवता को महृषि दुर्वासा ने शाप दे दिया था की तू अब देवता नहीं रहेगा | देवता ने कहा - सही देवता | मैं बहुत दिन देवता रह चुका | स्वर्ग के भोग से ऊब गया | उसने बूढ़े बाबा ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर कहा - तुम जो कहोगे, तुमको वही बना दिया जायेगा |

देवता ने पहले कुछ देर सोचा और फिर कहा - एक बार मुझे सब लोक देख आने दीजिये

ब्रह्मा जी ने स्वीकार कर लिया | देवता भला देव लोक में क्या देखता | नाचने - गाने वाले गन्धर्व, यक्ष, किन्नर - ये सब तो उसके सामने सेवक ही थे | देवताओं के राजा इंद्र का नंदन नमक बगीचा तथा पराजित नामक पेड़ भी उसका कई बार देखा हुआ ही था | वह गया ऊपर के लोकों में | उसने जनलोक, तपोलोक देखे | इनसे आगे  
मेहरलोक और सत्यलोक भी देख लिया | वैकुण्ठ, साकेत, गोलोक और शिवलोक जाने की उसे आज्ञा नहीं थी | उसने सोचा - इन लोकों में ऋषि बनकर रहने से तो तपस्या करनी होगी, भोग यहाँ है नहीं | हमने जीवनभर स्वर्ग के भोग  भोगे है | अब इस बखेड़े में कौन पड़े |

वह सीधे नीचे चला पाताल की और | उसने दैत्यों के बल्कि बड़ी प्रशंसा सुनी थी | वह नाग लोक को तो देखकर ही डर गया | बड़े भारी - भारी सर्प थे वहां | उसने दैत्यों को देखा, वे काले, कुरूप और उज्जड थे | इतना कुरूप होना वह नहीं चाहता था | वह पृथ्वी पर गया |

मैं पक्षी बनू तो उड़ता फिरूंगा | चाहे जहाँ के फल खा  सकूंगा | वह सोच रहा था | इतने में उसने देखा हवाई जहाज | ओह मनुष्य - यह भी उड़ता है | उसे डर लगा की पक्षी बनने पर कोई मनुष्य गोली मार देगा |
मैं जल में रहूंगा | उसने सोचा | परन्तु जल में ऊपर जहाज और भीतर पनडुब्बी चल रही थी | मनुष्य का भय यहाँ भी था | जल में भी एक जीव दूसरे पर आक्रमण ही करते रहते है |

'हाथी, सिंह - सब बलवान पशु उसने देखे | मनुष्य सबको पकड़कर बंद कर लेता है | सबको सेवक बना लेता है | मनुष्य पृथ्वी पर रेल और मोटर से दौड़ता है | पानी और हवा में भी चलता है | पानी, हवा और बिजली से भी काम लेता है | हजारों कोसों की बात उसी समय सुनता है | गाना सुनता है, वहां की तस्वीर भी देख लेता है | मनुष्य बड़ा बुद्धिमान है और सुंदर भी है | वह सोचते - सोचते लोटा वैकुण्ठ, साकेत, गोलोक और शिवलोक कैसे है और उनमे क्या है ? उसने ब्रह्मा जी से पूछा |

वे बड़े विचित्र लोक है, वहां यहाँ के सूरज - चाँद का प्रकाश नहीं है | वे अपने ही तेज से प्रकाशित है, वहां भगवान तथा उनके भक्त रहते है वहां सदा रहने वाला परम सुख है तथा नित्य सौंदर्य है, वहां दुःख का पता तक नहीं | ब्रह्मा जी ने बताया | देवता शीघ्रता से बोलै - तब मैं ...........|
ब्रह्मा जी ने उसे बोलने ही नहीं दिया | वे बीच में ही कहने लगे - वहां तो केवल मनुष्य अपनी साधना और भक्ति से ही जा सकता है |

तब मैं मनुष्य बनूंगा | देवता ने झटपट बता दिया | उसने देखा था की ब्रह्मा प्रसन्न होते तो वह कुछ भी नहीं बन सकता था और मनुष्य तो देवता भी बन जाता है | ब्रह्मा जी ने उसे मनुष्य बनाकर बताया -
                                'नर तन सम नाहि कवनिउ देहि |' 

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