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Friday 27 October 2017

बाबाजी गये चोरी करने

एक बाबाजी एक दिन अपने आश्रम से चले गये गंगाजी नहाने | बाबाजी धोखे से आधी रात को ही निकल पड़े थे | रास्ते में उनको चोरों का एक दल मिला था | चोरों ने बाबाजी से कहा - ' या तो हमारे साथ चोरी करने चलो , नहीं तो मार डालेंगे |'

बेचारे बाबाजी क्या करते, उनके साथ हो लिये | चोरों ने एक अच्छे - से घर में सेंध लगायी | एक चोर बाहर रहा और सब भीतर गये | साधु बाबा को भी भीतर ले गये | चोर तो लगे संदूक ढूंढ़ने, तिजोरी तोड़ने | बाबाजी ने देखा की एक और सिहांसन पर ठाकुर जी विराजमान हैं | उन्होंने सोचा - गये हैं तो हम भी कुछ करे | ये ठाकुर जी की पूजा करने बैठ गये | बाबाजी ने चन्दन घिसा | धूपबत्ती ठीक की और लगे इधर - उधर भोग ढूंढ़ने | वहां कुछ प्रसाद था नहीं | सोचा, ठाकुर जी के जागने पर कोई सती - सेवक जाएगा तो उससे भोग मांगा लेंगे | ठाकुरजी तो रेशमी दुप्पटा ताने सो रहे रहे थे | पूजा के लिये उनको जगाना आवयश्क था | बाबाजी ने उठाया शंख और लगे 'धूतुधु' करने |

ठाकुरजी तो पता नहीं जगे या नहीं, पर घर के सब सोये लोग चौंककर जाग पड़े | सब चोर सिरपर पैर रखकर भाग खड़े हुए | घर के लोगों ने दौड़कर बाबाजी पकड़ा | बाबाजी ने कहा - 'चिल्लाओ मत | ठाकुरजी भोग लगाने के लिये कुछ दौड़कर ले आओ, तबतक मैं पूजा करता हूँ | पूजा हो जाएगी, तब तुम सबको प्रसाद दूंगा और उन चोरों को भी दूंगा जो सब सेंध लगाकर मेरे साथ इस घर में गये हैं | जाओ, जल्दी करो |' घर के लोगों को बड़ा आष्चर्य हुआ | पूछने पर सब बातों का पता चल लगा | तब तक औरत ने हस्ते हुए बाबाजी के पास ठाकुरजी को भोग लगाने के लिये बहुत से पेड़े लाकर रख दिए | उस समय एक आदमी यह गा रहे थे - बिधि बस सूजन कुसंगत परही|
                                                     फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं ||

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