एक सियार था | एक
दिन उसे जंगल
में कुछ खाने
को न मिला
| बड़ी भूख लगी
थी | अंत में
वह बस्ती में
कुछ खाने की
खोज में आया
| अँधेरी रात थी
| लोग सो गये
थे | जाड़े का
दिन था | घरो
के दरवाजे बंद
थे | सियार गली
- गली भटकता फिर
|
एक धोबी का
घर था | गधे
बंधे थे | एक
नाँद में कपडे
भीग रहे थे
| और एक में
कुछ और था
| सियार को गंध
- सी आयी | सोचा,
शायद कुछ पेट
में डालने को
मिल जाये | नाँद
ऊँची थी | कूदा
और नाँद में
गिर पड़ा | जाड़े के
दिन, रात्रि का
समय, ठंडे पानी
में गिरने से
दुर्दशा हो गयी
| कूदा और थर-
थर काँपता सीधा
जगल की ओर
भगा |
पराहतेक़ाल नाले के
पानी से पेट
भरने गया | पानी
में छाया देखकर
दंग रह गया
| रात को वह
नील की नाँद
में गिर पड़ा
था | सूरत बदल
गयी थी | बड़ा
प्रसन्न हुआ | जंगल में
जानवरो की सभा
बुलाई, उसने घोषित
किया की 'मैं
नीलाकर हूँ | मुझे ब्रह्मा
ने जंगल का
राजा बनाकर भेजा
हैं | जो मेरी
आज्ञा नहीं मानेगा,
उसे बहुत भयंकर
दंड मिलेगा |'
जानवरो ने ऐसे
अदभुत रंग का
पशु कहा देखा
था | उन्होंने सियार
की बात मान
ली | वह जंगल
का राजा हो
गया | सब पर
रोब गांठने लगा
|
उस सियार ने शेर
को अपना मंत्री
बनाया, चीते को
सेनापति बनाया | दूसरे पशुओ
की उसने सेना
बनायीं |
वह बैठा - बैठा सबको
आज्ञा देता था
| शेर उसके लिये
शिकार मार लाता
था | रीछ उसे
बेर और दूसरे
वन के फल
लाकर देते थे
| वह खुद कोई
काम नहीं करता
था | सब पशु
उसे नीलाकर महाराज
कहकर पुकारते और
प्रणाम करते थे
|
उस ढोंगी सियार को
अपनी जाति वालों
से चिढ थी
| उन सियारों को
अपने पास भी
नहीं आने देता
था | उसे डर
लगता था की
कोई सियार उसे
पहचान ने ले
| किसी सियार को वह
मिलने का समय
नहीं देता था
| उसने चीते से
कह दिया था
की सभी सियारों
को वन से
भगा दो | सियारों
में राजा की
इस आज्ञा से
बड़ी हलचल मची
थी | अभी तक
किसी राजा ने
उन्हें वन में
से निकाला नहीं
था | कोई सिंह
सियारों को मारता
भी नहीं था
| इस नए राजा
ने तो उन्हें
एकदम जंगल से
बाहर ही खदेड़
देने को कह
दिया | सियार बार - बार
आपस में मिलते
थे और सलाह
करते थे की
कैसे राजा को
मनाया जाए | अपना
घर छोड़कर वे
बेचारे कहाँ जाते,
लेकिन कोई उपाय
नहीं दीखता था
| एक दिन एक
काने सियार ने
अपनी जाति वालों
से कहा - , यह
नया राजा तो
विचित्र है | इसके
न तो दांत
मजबूत है | और
ने पंजे ! यह
बलवान भी नहीं
जान पड़ता | जंगल
का राजा शेर
तो दूसरे का
मारा शिकार छूता
तक नहीं और
यह सदा दूसरों
से अपने लिये
शिकार मंगवाता है
|
दूसरे ने कहा - मुझे
भी दाल में
काला दीखता है
| यह सूरत - शकल में
हम लोगों जैसा
ही है | केवल
रंग में अंतर
है |
काने ने कहा
- 'अच्छा, हम सब
उसके पास कुछ
पीछे चलकर हुआ
- हुआ तो करे
| अभी भेद खुल
जायेगा |
सलाह पक्की हो गयी
| नकली सियार पशुओं के
दरबार में बैठा
था पीछे की
और से सियारों
की खूब हुआ
- हुआ सुनाई पड़ी
| उसे अपनी दशा
भूल गयी | उसने
भी कान खड़े
किये | छिलने लगा |
'अरे, यह तो
सियार हैं !' पशुओं
क्रोधभरी पुकार मची | वे
झपट पड़े और
सियार भागे तबतक
तो उसकी बोटी
- बोटी नोच डाली
गयी |
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