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Friday 27 October 2017

पाखण्ड का परिणाम

एक सियार था | एक दिन उसे जंगल में कुछ खाने को मिला | बड़ी भूख लगी थी | अंत में वह बस्ती में कुछ खाने की खोज में आया | अँधेरी रात थी | लोग सो गये थे | जाड़े का दिन था | घरो के दरवाजे बंद थे | सियार गली - गली भटकता फिर |

एक धोबी का घर था | गधे बंधे थे | एक नाँद में कपडे भीग रहे थे | और एक में कुछ और था | सियार को गंध - सी आयी | सोचा, शायद कुछ पेट में डालने को मिल जाये | नाँद ऊँची थी | कूदा और नाँद में गिर पड़ा |  जाड़े के दिन, रात्रि का समय, ठंडे पानी में गिरने से दुर्दशा हो गयी | कूदा और थर- थर काँपता सीधा जगल की ओर भगा |
पराहतेक़ाल नाले के पानी से पेट भरने गया | पानी में छाया देखकर दंग रह गया | रात को वह नील की नाँद में गिर पड़ा था | सूरत बदल गयी थी | बड़ा प्रसन्न हुआ | जंगल में जानवरो की सभा बुलाई, उसने घोषित किया की 'मैं नीलाकर हूँ | मुझे ब्रह्मा ने जंगल का राजा बनाकर भेजा हैं | जो मेरी आज्ञा नहीं मानेगा, उसे बहुत भयंकर दंड मिलेगा |'

जानवरो ने ऐसे अदभुत रंग का पशु कहा देखा था | उन्होंने सियार की बात मान ली | वह जंगल का राजा हो गया | सब पर रोब गांठने लगा |

उस सियार ने शेर को अपना मंत्री बनाया, चीते को सेनापति बनाया | दूसरे पशुओ की उसने सेना बनायीं |
वह बैठा - बैठा सबको आज्ञा देता था | शेर उसके लिये शिकार मार लाता था | रीछ उसे बेर और दूसरे वन के फल लाकर देते थे | वह खुद कोई काम नहीं करता था | सब पशु उसे नीलाकर महाराज कहकर पुकारते और प्रणाम करते थे |

उस ढोंगी सियार को अपनी जाति वालों से चिढ थी | उन सियारों को अपने पास भी नहीं आने देता था | उसे डर लगता था की कोई सियार उसे पहचान ने ले | किसी सियार को वह मिलने का समय नहीं देता था | उसने चीते से कह दिया था की सभी सियारों को वन से भगा दो | सियारों में राजा की इस आज्ञा से बड़ी हलचल मची थी | अभी तक किसी राजा ने उन्हें वन में से निकाला नहीं था | कोई सिंह सियारों को मारता भी नहीं था | इस नए राजा ने तो उन्हें एकदम जंगल से बाहर ही खदेड़ देने को कह दिया | सियार बार - बार आपस में मिलते थे और सलाह करते थे की कैसे राजा को मनाया जाए | अपना घर छोड़कर वे बेचारे कहाँ जाते, लेकिन कोई उपाय नहीं दीखता था | एक दिन एक काने सियार ने अपनी जाति वालों से कहा - , यह नया राजा तो विचित्र है | इसके तो दांत मजबूत है | और ने पंजे ! यह बलवान भी नहीं जान पड़ता | जंगल का राजा शेर तो दूसरे का मारा शिकार छूता तक नहीं और यह सदा दूसरों से अपने लिये शिकार मंगवाता है |
दूसरे ने कहा  - मुझे भी दाल में काला दीखता है | यह सूरत - शकल  में हम लोगों जैसा ही है | केवल रंग में अंतर है |

काने ने कहा - 'अच्छा, हम सब उसके पास कुछ पीछे चलकर हुआ - हुआ तो करे | अभी भेद खुल जायेगा |
सलाह पक्की हो गयी | नकली सियार पशुओं के दरबार में बैठा था पीछे की और से सियारों की खूब हुआ - हुआ सुनाई पड़ी | उसे अपनी दशा भूल गयी | उसने भी कान खड़े किये | छिलने लगा |
'अरे, यह तो सियार हैं !' पशुओं क्रोधभरी पुकार मची | वे झपट पड़े और सियार भागे तबतक तो उसकी बोटी - बोटी नोच डाली गयी | 

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