एक मंदिर था आसाम
में | खूब बड़ा
मंदिर था | उसमे
हजारो यात्री दर्शन
करने आते थे
| सहसा उसका प्रबंधक
प्रधान पुजारी मर गया
| मंदिर के महंत
को दूसरे पुजारी
की आव्यशकता हुई
| उन्होंने घोषणा करा दी
की जो कल
सबेरे पहले पहर
आकर यहाँ पूजा
सम्बन्दी जांच में
ठीक सिद्ध होगा
, उसे पुजारी रखा
जायेगा |
मंदिर बड़ा था
| पुजारी को बहुत
आमदनी थी | बहुत-से पंडित
सबेरे पहुंचने के
लिए चल पड़े
| मंदिर पहाड़ी पर था
|
एक ही रास्ता
था | उसपर भी
कांटे और कंकड़
- पत्थर थे | पंडितो
की भीड़ चली जा
रही थी मंदिर
की और | किसी
प्रकार कांटे और कंकड़ों
से बचते हुए
लोग जा रहे
थे |
सब पंडित पहुँच गए
| महन्त ने सब
को आदर पूर्वक
बैठाया | सबको भगवन
का प्रसाद मिला
| सबसे अलग - अलग कुछ
जवाब और मंत्र
पूछे गए | अंत
में परीक्षा पूरी
हो गयी | जब
दोपहर हो गयी
और सब लोग
उठने लगे तो
एक नौजवान पंडित
वहां आया | उसके
कपडे फ़टे थे
| वह पसीने से
भीग गया था
और बहुत गरीब
जान पड़ता था
|
महन्त उसकी दशा
देखकर दयालु हो
रहे थे | बोले
- 'तुम जल्दी क्यों नहीं
आये ?'
उसने उतर दिया
-- ' घर से बहुत
जल्दी चला था
| मंदिर के मार्ग
में बहुत कांटे
थे और पत्थर
भी थे | बेचारे
यात्रियों को उनसे
कष्ट होता | उन्हें
हटाने में देर
हो गयी |'
उसने कहा - ' भगवान को
स्नान करा के
चन्दन - फूल चढ़ा
देना और शंख
बजाना तो जानता
हु |'
'और मंत्र ? महन्त ने
पूछा |
वह उदास होकर
बोलै - ' भगवान से नहाने
- खाने को कहने
के लिए मंत्र
भी होते है
, यह में नहीं
जानता |' सब पंडित
हसने लगे की
'यह मुर्ख भी
पुजारी बनने आया
है '
महन्त ने एक
क्षण सोचा और
कहा - 'पुजारी तो तुम
बन गए | अब
मन्त्र सीख लेना
, में सीखा दूंगा
| मुझसे भगवान ने स्वपन
में कहा है
की मुझे मनुष्या
चाहिए |
'हमलोग मनुष्य नहीं हैं
? दूसरे पंडितो ने पूछा
| वे लोग महन्त
नाराज हो रहे
थे | इतने पढ़े-
लिखे विद्वानों के
रहते महन्त एक
ऐसे आदमी को
पुजारी बना दे
जो मंत्र भी
न जानता हो,
यह पंडितों को
अपनाम कीबात जान
पड़ती थी |
महन्त ने पंडितों
की और देखा
और कहा - ' अपने
स्वार्थ की बात
तो पशु भी
जानते है | बहुत
- पशु बहुत चतुर
भी होते है
| लेकिन सचमुच मनुष्य तो
वही है, जो
दूसरों को सुख
पहुंचाने के लिए
अपने स्वार्थ और
सुख को छोड़
सकता है |
पंडितों सिर नीचे
झुक गया | उन
लोगों को बड़ी
लज्जा आई | वे
धीरे - धीरे उठे
और मंदिर में
भगवान को और
महन्त को नमस्कार
कर के उस
पर्वत नीचे उतरने
लगे |
भाई, तुम सोचों
तो की मनुष्य
हो या नहीं
?
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