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Monday 30 October 2017

मुझे मनुष्ये चाहिए

एक मंदिर था आसाम में | खूब बड़ा मंदिर था | उसमे हजारो यात्री दर्शन करने आते थे | सहसा उसका प्रबंधक प्रधान पुजारी मर गया | मंदिर के महंत को दूसरे पुजारी की आव्यशकता हुई | उन्होंने घोषणा करा दी की जो कल सबेरे पहले पहर आकर यहाँ पूजा सम्बन्दी जांच में ठीक सिद्ध होगा , उसे पुजारी रखा जायेगा |
मंदिर बड़ा था | पुजारी को बहुत आमदनी थी | बहुत-से पंडित सबेरे पहुंचने के लिए चल पड़े | मंदिर पहाड़ी पर था |
एक ही रास्ता था | उसपर भी कांटे और कंकड़ - पत्थर थे | पंडितो की भीड़  चली जा रही थी मंदिर की और | किसी प्रकार कांटे और कंकड़ों से बचते हुए लोग जा रहे थे |
सब पंडित पहुँच गए | महन्त ने सब को आदर पूर्वक बैठाया | सबको भगवन का प्रसाद मिला | सबसे अलग - अलग कुछ जवाब और मंत्र पूछे गए | अंत में परीक्षा पूरी हो गयी | जब दोपहर हो गयी और सब लोग उठने लगे तो एक नौजवान पंडित वहां आया | उसके कपडे फ़टे थे | वह पसीने से भीग गया था और बहुत गरीब जान पड़ता था |
महन्त उसकी दशा देखकर दयालु हो रहे थे | बोले - 'तुम जल्दी क्यों नहीं आये ?'
उसने उतर दिया -- ' घर से बहुत जल्दी चला था | मंदिर के मार्ग में बहुत कांटे थे और पत्थर भी थे | बेचारे यात्रियों को उनसे कष्ट होता | उन्हें हटाने में देर हो गयी |'
उसने कहा - ' भगवान को स्नान करा के चन्दन - फूल चढ़ा देना और शंख बजाना तो जानता हु |'
'और मंत्र ? महन्त ने पूछा |

वह उदास होकर बोलै - ' भगवान से नहाने - खाने को कहने के लिए मंत्र भी होते है , यह में नहीं जानता |' सब पंडित हसने लगे की 'यह मुर्ख भी पुजारी बनने आया है '

महन्त ने एक क्षण सोचा और कहा - 'पुजारी तो तुम बन गए | अब मन्त्र सीख लेना , में सीखा दूंगा | मुझसे भगवान ने स्वपन में कहा है की मुझे मनुष्या चाहिए |

'हमलोग मनुष्य नहीं हैं ? दूसरे पंडितो ने पूछा | वे लोग महन्त नाराज हो रहे थे | इतने पढ़े- लिखे विद्वानों के रहते महन्त एक ऐसे आदमी को पुजारी बना दे जो मंत्र भी जानता हो, यह पंडितों को अपनाम कीबात जान पड़ती थी |
महन्त ने पंडितों की और देखा और कहा - ' अपने स्वार्थ की बात तो पशु भी जानते है | बहुत - पशु बहुत चतुर भी होते है | लेकिन सचमुच मनुष्य तो वही है, जो दूसरों को सुख पहुंचाने के लिए अपने स्वार्थ और सुख को छोड़ सकता है |

पंडितों सिर नीचे झुक गया | उन लोगों को बड़ी लज्जा आई | वे धीरे - धीरे उठे और मंदिर में भगवान को और महन्त को नमस्कार कर के उस पर्वत नीचे उतरने लगे |
              भाई, तुम सोचों तो की मनुष्य हो या नहीं ?

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