जापान में एक
साधारण चरवाहा था | उसका
नाम था मुसाई
| एक दिन वह
गायें चरा था
| एक बगुला उड़ता
आया और उसके
पैरों के पास
गिर पड़ा | मुसाई
ने बगुले को
उठा लिया | सम्भवते
बाज ने बगुले
को घायल क्र
दिया था | उजले
पंखों पर रक्त
के लाल - लाल
बिंदु थे | बेचारा
पक्षी बार - बार
मुख फाड़ रहा
था |
मुसाई प्यार से उस
पर हाथ फेरा
| जल के समीप
ले जाकर उसके
पंख धोये | थोड़ा
जल चोंच में
दाल दिया | पक्षी
में साहस आया
| थोड़ी देर में
वह उड़ गया
| इसके थोड़े दिन
पीछे एक सुन्दर
भगवान लड़की ने
मुसाई की माता
से प्राथना की
और उससे मुसाई
का विवाह हो
गया |
मुसाई बड़ा प्रसन्न
था | उसकी औरत
बहुत भली थी
| वह मुसई और
उसकी माता की
मन लगाकर सेवा
करती थी | वह
घर का सब
काम अपने आप
करते लेती थी
| मुसई की माता
तो अपने बेटे
की औरत की
गांव भर में
प्रंशंसा ही करती
फिरती थी | उसे
घर के किसी
काम में तनिक
भी हाथ नहीं
लगाना पड़ता था
|
भाग्य की बात
- देश में अकाल
पड़ा | खेतो में
कुछ हुआ नहीं
| मुसई मजदूरी की खोज
में माता और
औरत के साथ
टोकियो नगर में
आया | मजदूरी कही
जल्दी मिलती है
| मुसई के पास
के पैसे खर्च
हो गए थे
| उसको उपवास करना पड़ा
|
तब उसकी औरत
ने कहा - 'मैं
मलमल बना दूंगी
| तुम बेच लेना
| लेकिन जब में
मलमल बुनु तो
मेरे कमरे में
कोई न आवे
|'
मुसई की समझ
में कोई बात
नहीं आयी | वह
नहीं जानता था
की उसकी औरत
मलमल कैसे बनवाएगी
? लेकिन मुसई सीधा
था | उसे अपनी
औरत पर पूरा
विश्वास था | उसकी
औरत पहले कभी
झूट नहीं कहा
था | फिर पास
में पैसे थे
नहीं |
किसी प्रकार कोई पैसे
मिलने का रास्ता
निकले तो घर
का काम चले
|
मुसई ने औरत
की बात चुपचाप
मान ली | औरत जब
उससे कुछ मांगती
नहीं तो उसकी
बात मान लेने
में हानि भी
क्या थी | उसने
अपनी माता से
कह दिया की
जब उसकी औरत
अपना कमरा बंद
कर ले तो
कोई उसे पुकारे
नहीं और न
उसके कमरे में
ही जाये |
दूध के समान
उजला मलमल और
उसपर छोटे - छोटे
लाल छींटे - मुसई
की औरत ने
जो मलमल बनाई
वह अद्भुत थी
| रेसम के समान
चमकाती थी | बहुत
कोमल थी | जब
मुसई उसे बेचने
गया तो खुद
राजा मिकाडो ने
मलमल खरीदी | मुसई
को सोने की
मुहरें मिली | अब तो
मुसई धनी हो
गया |
उसकी औरत मलमल
बनती और वह
बेच लाता |
एक दिन मुसई
ने सोचा - ' मेरी
औरत न रुई
लेती है , न
रंग | वह मलमल
कैसे बनाती है
?'
मुसई छिपकर खिड़की से
देखने गया, जान
औरत ने मलमल
बनाने का कमरा
बंद कर लिया
था | मुसई ने
देखा भीतर औरत नहीं
है | एक उजला
बगुला बैठा है
| वह अपने पंख
से पतला तार
नोचता है | और
पंजो से मलमल
बुनता है | उसके
गले में घाव
है | घाव का
रक्त वह पंजे
से वस्त्र पर
छिड़कर छींटे
डालता है | मुसई
ने समाज लिया
की वह बगुला
औरत बना है
और उपकार का
बदला दे रहा
है |
मुसई को बड़ी
हैरानी हुई | एक छोटे
बगुले ने उपकार
का ऐसा बदला
दिया है | यह
सोचकर उसका हिर्दय
भर आया | उसकी
आँखों में आंसू
आ गए | वह
जहाँ - का - तहाँ
खड़ा रह गया
| उसे वह बात
भूल गयी की
उसकी औरत ने
मना किया है
की मलमल बुनते
समय कोई उसे
देखने न आवे
| उसे तो यह
भी याद नहीं
रहा की वह
यहाँ क्यों खड़ा
है |
इसी समय मुसई
की माता ने
पुकारा | मुसई बोल
पड़ा | बगुला चौंका
और खिड़की से
उड़ गया -
जो जीवों पर दयां
करता है, उसे
अवस्य बड़ा लाभ
होता है |
0 comments:
Post a Comment