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Tuesday 31 October 2017

बगुला उड़ गया

जापान में एक साधारण चरवाहा था | उसका नाम था मुसाई | एक दिन वह गायें चरा था | एक बगुला उड़ता आया और उसके पैरों के पास गिर पड़ा | मुसाई ने बगुले को उठा लिया | सम्भवते बाज ने बगुले को घायल क्र दिया था | उजले पंखों पर रक्त के लाल - लाल बिंदु थे | बेचारा पक्षी बार - बार मुख फाड़ रहा था |
मुसाई प्यार से उस पर हाथ फेरा | जल के समीप ले जाकर उसके पंख धोये | थोड़ा जल चोंच में दाल दिया | पक्षी में साहस आया | थोड़ी देर में वह उड़ गया | इसके थोड़े दिन पीछे एक सुन्दर भगवान लड़की ने मुसाई की माता से प्राथना की और उससे मुसाई का विवाह हो गया |

मुसाई बड़ा प्रसन्न था | उसकी औरत बहुत भली थी | वह मुसई और उसकी माता की मन लगाकर सेवा करती थी | वह घर का सब काम अपने आप करते लेती थी | मुसई की माता तो अपने बेटे की औरत की गांव भर में प्रंशंसा ही करती फिरती थी | उसे घर के किसी काम में तनिक भी हाथ नहीं लगाना पड़ता था |
भाग्य की बात - देश में अकाल पड़ा | खेतो में कुछ हुआ नहीं | मुसई मजदूरी की खोज में माता और औरत के साथ टोकियो नगर में आया | मजदूरी कही जल्दी मिलती है | मुसई के पास के पैसे खर्च हो गए थे | उसको उपवास करना पड़ा |

तब उसकी औरत ने कहा - 'मैं मलमल बना दूंगी | तुम बेच लेना | लेकिन जब में मलमल बुनु तो मेरे कमरे में कोई आवे |'

मुसई की समझ में कोई बात नहीं आयी | वह नहीं जानता था की उसकी औरत मलमल कैसे बनवाएगी ? लेकिन मुसई सीधा था | उसे अपनी औरत पर पूरा विश्वास था | उसकी औरत पहले कभी झूट नहीं कहा था | फिर पास में पैसे थे नहीं |

किसी प्रकार कोई पैसे मिलने का रास्ता निकले तो घर का काम चले |

मुसई ने औरत की बात चुपचाप मान ली  | औरत जब उससे कुछ मांगती नहीं तो उसकी बात मान लेने में हानि भी क्या थी | उसने अपनी माता से कह दिया की जब उसकी औरत अपना कमरा बंद कर ले तो कोई उसे पुकारे नहीं और उसके कमरे में ही जाये |

दूध के समान उजला मलमल और उसपर छोटे - छोटे लाल छींटे - मुसई की औरत ने जो मलमल बनाई वह अद्भुत थी | रेसम के समान चमकाती थी | बहुत कोमल थी | जब मुसई उसे बेचने गया तो खुद राजा मिकाडो ने मलमल खरीदी | मुसई को सोने की मुहरें मिली | अब तो मुसई धनी हो गया |
उसकी औरत मलमल बनती और वह बेच लाता |

एक दिन मुसई ने सोचा - ' मेरी औरत रुई लेती है , रंग | वह मलमल कैसे बनाती है ?'

मुसई छिपकर खिड़की से देखने गया, जान औरत ने मलमल बनाने का कमरा बंद कर लिया था | मुसई ने देखा भीतर  औरत नहीं है | एक उजला बगुला बैठा है | वह अपने पंख से पतला तार नोचता है | और पंजो से मलमल बुनता है | उसके गले में घाव है | घाव का रक्त वह पंजे से वस्त्र पर छिड़कर  छींटे डालता है | मुसई ने समाज लिया की वह बगुला औरत बना है और उपकार का बदला दे रहा है |

मुसई को बड़ी हैरानी हुई | एक छोटे बगुले ने उपकार का ऐसा बदला दिया है | यह सोचकर उसका हिर्दय भर आया | उसकी आँखों में आंसू गए | वह जहाँ - का - तहाँ खड़ा रह गया | उसे वह बात भूल गयी की उसकी औरत ने मना किया है की मलमल बुनते समय कोई उसे देखने आवे | उसे तो यह भी याद नहीं रहा की वह यहाँ क्यों खड़ा है |

इसी समय मुसई की माता ने पुकारा | मुसई बोल पड़ा | बगुला चौंका और खिड़की से उड़ गया -
जो जीवों पर दयां करता है, उसे अवस्य बड़ा लाभ होता है |

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