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Tuesday 31 October 2017

सत्य बोलो

एक डाकू था | डाके डालता,लोगों को मारता और उनके रूपये, बर्तन, कपडे, गहने, लेकर चम्पत हो जाता | पता नहीं, कितने लोगों को उसने मारा | पता नहीं कितने पाप किये |

एक स्थान पर कथा हो रही थी | कोई साधु कथा कह रहे थे | बड़े - बड़े लोग आये थे | डाकू भी गया | उसने सोचा - कथा समाप्त होने पर रात्रि हो जाएगी | कथा में जो बड़े आदमी घर लौटेंगे, उनमे से किसी को मौका देखकर लूट लूंगा |'

कोई कैसा भी हो, वह जैसे समाज में जाता है, उस समाज का प्रभाव उस पर अवस्य पड़ता है | भगवन की कथा और सत्संग में थोड़ी देर बैठने या वहां कुछ देर को किसी दूसरे बहाने से जाने में भी लाभ ही होता है | उस कथा - सत्संग का मन पर कुछ - - कुछ प्रभाव अवस्य पड़ता है |

कथा सुनकर उसको लगा की साधु तो बड़े अच्छे है | उसे कथा सुनकर उसे मरने का डर लगा था | और मरने पर पापों का दंड मिलेगा, यह सुनकर वह घबरा गया था | वह साधु के पास गया | 'महाराज ! में डाकू हूँ | डाका डालना तो मुझसे छूट नहीं सकता |क्या मेरे भी उद्धार का कोई उपाए है ?  उसने साधु से पूछा |
साधु ने सोचकर कहा - 'तुम झूट बोलना छोड़ दो |'

डाकू ने स्वीकार कर लिया और लोट पड़ा | कथा से लौटने वाले घर चले गए थे | डाकू ने राजा के घर डाका डालने का निस्चय किया | वह राजा महल की और चला |

पहरेदार ने पूछा - 'कौन हैं ?'
 झूट तो छोड़ ही चूका था, डाकू ने कहा - 'डाकू ' |

पहरेदार ने समझा कोई राजमहल का आदमी है | पूछने से गुस्सा हो रहा है | उसने रास्ता छोड़ दिया और कहा
'भाई' में पूछ रहा था | नाराज क्यों होते हो, जाओ |'
वह भीतर चला गया और खूब बड़ा संदूक सिर पर लेकर निकला |
पहरेदार ने पूछा - 'क्या ले जा रहे हो ?'
उसने कहा - जवाहरात का संदूक |'
पहरेदार ने पूछा - 'किससे पूछकर ले जाते  हो ?'

डाकू को झूट तो बोलना नहीं था | उसने सत्य बोलने का प्रभाव भी देख लिया  था | वह जानता था की पहरेदार उसे राजमहल में भीतर जाने दिया, वह भी सत्य का प्रभाव था |
नहीं तो पहरेदार उसे भीतर भला कभी जाने देता ? डाकू के मन में उस दिन के साधु साधु के लिए बड़ी श्रद्धा हो गयी थी | उसका डर एकदम चला गया | वह सोच रहा था की यदि इतना धन लेकर में निकल गया और पकड़ा गया तो फिर आगे कभी डाके नहीं डालूंगा | उसे अब अपना डाका डालने का काम अच्छा नहीं लगता था | पहरेदार से वह जरा भी झिझक नहीं | उसे तो  सत्य का भरोसा हो गया था | उसने कहा - 'डाका डालकर ले जा रहा हूँ |

पहरेदार ने समझा कोई साधारण वस्तु है और यह बहुत चिढ़ने वाला जान पड़ता है | उसने डाकू को जाने दिया | सुबह राजमहल में तेहल का मचा | जवाहरात की पेटी नहीं थी |
पहरेदार से पता लगने पर राजा ने डाकू को ढूंढ़कर बुलवाया | डाकू के सत्य बोलने से राजा बहुत प्रसन हुआ | उसने उसे अपने महल का प्रधान रक्षक बना दिया | अब डाकू को रुपयों के लिए डकैती करने की आवशक्ता ही नहीं रही |
उसने सबसे बड़ा पाप असत्य छोड़ा तो दूसरे पाप अपने - आप छूट गए - 'नहि असत्य सम पातक पुंजा |,

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