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Monday 16 October 2017

उसने रामायण पढ़ी होती

हुएन सांगची लाऊ, यही नाम था उसका | पिता उसे सांग कहते थे | जी चाहे तो आप भी इसी नाम से पुकारिये | उसका पिता शिकारी था | रीछ फँसाता, हिरन मारता और फिर उनके चमड़े बेच डालता | यही रोजगार था बाप - दादो से उसके घर का |

एक दिन पिता ने उसे एक बड़े पेड़ की छाया में बैठा दिया और स्वयं बंदूक लेकर एक और जंगल में चला गया | घर में माँ हैं और कोई भाई - बहन | इसलिए सूने घर में उसका मन लगता नहीं था | मास्टरजी की बेंतके डर से वह पाठशाला नहीं जाता | दूसरे लड़के पढ़ने चले जाते हैं | भला, गांव में किसके साथ खेले
पिता के साथ रोज जंगल में जाता हैं | कभी चिड़ियों को उडाता हैं, कभी खरगोश पीछे दौड़ता हैं | झरबेरी और झाड़ू कभी-कभी खाने को मिल जाते हैं | वह शिकारी का लड़का हैं | उसे अकेले जंगल में दौड़ने और खेलने में डर नहीं लगता |

एक दिन पिता के चले जाने पार वह घूम रहा था | एक और से 'खो - खो' की आवाज़ आयी | वह देखने दौड़ गया | बड़े - बड़े बालों में कांटे फंसे थे | एक और से कांटे छुड़ाता तो दूसरी और उलझ जाते | रीछ घबरा गया था | लड़के को दया गयी | वह पास चला गया | उसने कांटे छुड़ाकर रीछ को छुटकारा दे दिया |

रीछ बड़े जोर से चिल्लाया | लड़के के सामने खड़े होकर  देर तक भल भलभलाता  रहा | लड़का डर रहा था | मुझे खा  जाय | भाग भी नहीं सकता था | रीछ जाने क्या व्याख्यान दे रहा था | थोड़ी देर में रीछ उलटे भाग गया | लड़के की जान में जान आयी | रीछ किसीपर चिढ़ जाय तो बड़ा भयानक शत्रु होता हैं, वह पेड़ पर भी चिढ़ जाता हैं | लेकिन किसी पर प्रसन्न हों जाय तो मित्र भी बहुत अच्छा होता हैं | अपने पर उपकार करने वाले का उपकार  वह भूलता नहीं हैं | जो लोग दूसरे प्राणियों पर दया करते हैं, उन्हें उस दया और उपकार का फल भी मिलता हैं | संसार के बहुत - से प्राणी मनुष्य के उपकार का बड़ा सुन्दर बदला उपकार कर  के  चुकाते हैं | रीछ की भाषा लड़का नहीं समझता था | किन्तु रीछ ने उससे कहा था - मैं तुम्हारा मित्र हूँ | मैं तुम्हारे लिये अभी मीठे फल लेकर अत हूँ | लड़का वहां से बहुत दूर भाग जाना चाहता था | वह दौड़ा जा रहा था | वह कुछ ही दूर जा पाया था की रीछ फिर गया | अब की बार वह कई सुन्दर - सुन्दर फल लाया था | उसने लड़के के हाथो में फल दे दिए | लड़के ने खाकर  देखा की बहुत मीठे हैं वे फल |

लड़के और रीछ की दोस्ती हों गयी | इस मित्रता से  लड़के का बाप बहुत प्रसन्न था | रीछ लड़के को रोज मीठे - मीठे फल लाकर देता था | लड़का अपने पिता को भी वे फल देता था | एक दिन लड़के ने जंगल में आते ही देखा की उसके मित्र रीछ की आंखे दुखनी गयी हैं | वह एक पेड़ के तने से लगकर बैठा हैं और 'हूँ, हूँ' कर के रो रहा हैं | लड़के को हंसी गयी | वह ताली बजाकर हसने लगा | रीछ को आया गुस्सा और उसने लड़के की नाक नोच खायी | लड़के की यह दुर्दशा क्यों होती, यदि उसने रामायण पढ़ी होती | यदि उसने रामायण की  शिक्षा ली होती तो उसे पता होता की -

                              जे मित्र दुःख होही दुखारी |
                              तिन्हैं बिलोकत पातक भारी ||

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