हुएन सांगची लाऊ, यही
नाम था उसका
| पिता उसे सांग
कहते थे | जी
चाहे तो आप
भी इसी नाम
से पुकारिये | उसका
पिता शिकारी था
| रीछ फँसाता, हिरन
मारता और फिर
उनके चमड़े बेच
डालता | यही रोजगार
था बाप - दादो
से उसके घर
का |
एक दिन पिता
ने उसे एक
बड़े पेड़ की
छाया में बैठा
दिया और स्वयं
बंदूक लेकर एक
और जंगल में
चला गया | घर
में न माँ
हैं और न
कोई भाई - बहन
| इसलिए सूने घर
में उसका मन
लगता नहीं था
| मास्टरजी की बेंतके
डर से वह
पाठशाला नहीं जाता
| दूसरे लड़के पढ़ने
चले जाते हैं
| भला, गांव में
किसके साथ खेले
पिता के साथ
रोज जंगल में
जाता हैं | कभी
चिड़ियों को उडाता
हैं, कभी खरगोश
पीछे दौड़ता हैं
| झरबेरी और झाड़ू
कभी-कभी खाने
को मिल जाते
हैं | वह शिकारी
का लड़का हैं
| उसे अकेले जंगल
में दौड़ने और
खेलने में डर
नहीं लगता |
एक दिन पिता
के चले जाने
पार वह घूम
रहा था | एक
और से 'खो
- खो' की आवाज़
आयी | वह देखने
दौड़ गया | बड़े
- बड़े बालों में
कांटे फंसे थे
| एक और से
कांटे छुड़ाता तो
दूसरी और उलझ
जाते | रीछ घबरा
गया था | लड़के
को दया आ
गयी | वह पास
चला गया | उसने
कांटे छुड़ाकर रीछ
को छुटकारा दे
दिया |
रीछ बड़े जोर
से चिल्लाया | लड़के
के सामने खड़े
होकर देर
तक भल भलभलाता रहा
| लड़का डर रहा
था | मुझे खा न
जाय | भाग भी
नहीं सकता था
| रीछ जाने क्या
व्याख्यान दे रहा
था | थोड़ी देर
में रीछ उलटे
भाग गया | लड़के
की जान में
जान आयी | रीछ
किसीपर चिढ़ जाय
तो बड़ा भयानक
शत्रु होता हैं,
वह पेड़ पर
भी चिढ़ जाता
हैं | लेकिन किसी
पर प्रसन्न हों
जाय तो मित्र
भी बहुत अच्छा
होता हैं | अपने
पर उपकार करने
वाले का उपकार वह
भूलता नहीं हैं
| जो लोग दूसरे
प्राणियों पर दया
करते हैं, उन्हें
उस दया और
उपकार का फल
भी मिलता हैं
| संसार के बहुत
- से प्राणी मनुष्य
के उपकार का
बड़ा सुन्दर बदला
उपकार कर के
चुकाते हैं | रीछ की
भाषा लड़का नहीं
समझता था | किन्तु
रीछ ने उससे
कहा था - मैं
तुम्हारा मित्र हूँ | मैं
तुम्हारे लिये अभी
मीठे फल लेकर
अत हूँ | लड़का
वहां से बहुत
दूर भाग जाना
चाहता था | वह
दौड़ा जा रहा
था | वह कुछ
ही दूर जा
पाया था की
रीछ फिर आ
गया | अब की
बार वह कई
सुन्दर - सुन्दर फल लाया
था | उसने लड़के
के हाथो में
फल दे दिए
| लड़के ने खाकर देखा
की बहुत मीठे
हैं वे फल
|
लड़के और रीछ
की दोस्ती हों
गयी | इस मित्रता
से लड़के
का बाप बहुत
प्रसन्न था | रीछ
लड़के को रोज
मीठे - मीठे फल
लाकर देता था
| लड़का अपने पिता
को भी वे
फल देता था
| एक दिन लड़के
ने जंगल में
आते ही देखा
की उसके मित्र
रीछ की आंखे
दुखनी आ गयी
हैं | वह एक
पेड़ के तने
से लगकर बैठा
हैं और 'हूँ,
हूँ' कर के
रो रहा हैं
| लड़के को हंसी
आ गयी | वह
ताली बजाकर हसने
लगा | रीछ को
आया गुस्सा और
उसने लड़के की
नाक नोच खायी
| लड़के की यह
दुर्दशा क्यों होती, यदि
उसने रामायण पढ़ी
होती | यदि उसने
रामायण की
शिक्षा ली होती
तो उसे पता
होता की -
जे न मित्र
दुःख होही दुखारी
|
तिन्हैं बिलोकत पातक भारी
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