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Wednesday 25 October 2017

रीछ की समझदारी

वह शिकार खेलने गया था | लम्बी मार की बदूक थी और कंधे पर कारतूसों की पेटी पड़ी थी | सामने ऊँचा पर्वत दूरतक चला गया था | पर्वत से लगा हुआ खड़ा था, कई हजार फ़ीट गहरा | पतली - सी पग डंडी पर्वत के बीच से खड्डे के उस पार तक जाती थी | उस पार जंगली बेर हैं और इस समय खूब पके हैं | वह जनता था की रीछ बेर खाने जाते होंगे |

उसने देखा, एक छोटा रीछ इस पार से पग डंडी पार होकर उस पार जा रहा हैं | गोली मारने से रीछ खड्डे में गिर पड़ेगा | कोई लाभ देखकर वह चुपचाप खड़ा रहा | दूरबीन लगाते ही उसने देखा की उस पार से उसी पग डंडी पार दूसरा बड़ा रीछ इस पार को रहा हैं |
'दोनों लड़ेंगे और खड्डे में गिर कर मर जायेंगे |' वह अपने - आप बड़बड़ाया | पग डंडी इतनी पतली थी की उस पर से   तो पीछे लौटना संभव था और दो - एक साथ निकल सकते थे | वह गौर से देखने लगे |
एक को गोली मार दूँ , लेकिन दूसरा चौंक जायेगा और चौंकते ही वह भी गिर जायेगा |' देखने के सिवा कोई रास्ता नहीं |

दोनों रीछ आमने - सामने हुए | पता नहीं, क्या वाद - विवाद करने लगे अपनी भाषा में | पांच मिनट में ही उनका भलभलान बंद हों गया और शिकारी ने देखा की बड़ा रीछ चुपचाप जैसे था, वैसे ही बैठ गया | छोटा उसके ऊपर चढ़कर आगे निकल गया और तब बड़ा उठ खड़ा हुआ |
'ओह, पशु इतना समझदार होता हैं और मूर्ख मनुष्या  आपस में लड़ते हैं | शिकारी बिना गोली चलाये लौट | उसने शिकार करना छोड़ दिया |

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