अपने देश में
ऐसे बहुत - से
नगर और गांव
हैं,जहाँ बहुत
थोड़े पेड़ हैं
| यदि वहां गायें
- बैल भी कम
हों और गोबर
थोड़ा हों तो
रसोई बनाने के
लिये लकड़ी या
उपले बड़ी कठिनाई
से मिलते हैं
|
एक छोटा - सा बाजार
था | उस के
आस - पास पेड़
कम थे और
बाजार में किसानों
के घर न
होने से गाय
- बैल भी थोड़े
थे | जलाने के
लिये लकड़ी और
उपले वहां के
लोगों की खरीदना
पड़ता था | दो
दिन - तीन दिन
वर्षा हुई थी,
इसी से गाँवो
से कोई मजदूर
बाजार में लकड़ी
या उपला बेचने
नहीं आया था
| इससे कई घरों
में रसोई बनाने
को ईंधन ही
नहीं बचा था
|
उस गावं के
दो लड़के, जो
सगे भाई थे,
अपने घर के
लिये सूखी लकड़ी
ढूंढ़ने निकले | उनके पिता
घर पर नहीं
थे | उनकी माता
बिना सूखी लकड़ी
के कैसे रोटी
बनाती और कैसे
अपने लड़को को
खिलाती | दोनों लड़के अपने
माता पिता के
लगाये आम के
पेड़ के नीचे
गए | वहां उन्होंने
देखा कि आम
की एक मोटी
सूखी डाल आंधी
से टूटकर नीचे
गिरी हैं | बड़े
लड़के ने कहा
-लकड़ी तो मिल
गयी, लेकिन हम
लोग इसे कैसे
ले जायेंगे ?' छोटे
ने कहा - हम
इसे छोड़कर जायेंगे
तो कोई दूसरा
उठा ले जायेगा
| लेकिन वे क्या
करते | बड़ा भाई
दस वर्ष का
था और और
साढ़े आठ वर्ष
का | इतनी बड़ी
लकड़ी उनसे उठ
नहीं सकती थी
| इतने में छोटे
लड़के ने देखा
की सूखी लकड़ी
से गिरे एक
मोटे बड़े सफ़ेद
कीड़े को, जो
की मर गया
हैं, बहुत - सी
चीटियां उठाये लिये जा
रही हैं | छोटा
लड़का चिल्लाया - भैया
! यह क्या हैं
| बड़े ने - 'ये
तो चींटिया कीड़े
को ले जा
रही हैं | छोटा
भाई बोला - इतनी
छोटी चींटिया कीड़े
को कैसे ले
जा रही हैं
| बड़े भाई ने
कहा - देखो तो
कितनी चींटिया हैं
| ये सब मिलकर
इस कीड़े को
ले जाती हैं
| बहुत सी चींटिया
मिलकर तो मरे
हुए सांप को
भी घसीट कर
ले जाती हैं
| चींटिया कीड़े को
धीरे - धीरे खिसका
रही थी | कीड़ा
मोटा था | वह
बार - बार लुढ़क
पड़ता था | कभी
- कभी दस - पांच
चींटिया उसके नीचे
दब भी जाती
थी | लेकिन दूसरी
चींटिया उस कीड़े
को हिलाकर झट
दबी चींटियों को
निकल देती थी
| काली - काली छोटी
चींटिया थकने का
नाम ही नहीं
ले रही थी
| लड़को के देखते
- देखते वे कीड़े
को दूर तक
धीरे - धीरे सरका
कर ले गयी
| छोटा लड़का तो
प्रसन्न हों गया
| उसने ताली बजाई
और कूदने लगे
| फिर वह आम
से गिरी सूखी
लकड़ी पर जाकर
बैठ गया और
बोला - भैया ! हमलोग क्या
चींटियों से भी
गए - बीते हैं
| तू जाकर अपने
मित्रों को बुला
लो | मैं यहाँ
बैठता हूँ | हम
सब लड़के मिलकर
लकड़ी उठा ले
जाएंगे | बड़ा लड़का
बाजार में गया
और अपने मित्रों
को बुला लाया
| बहुत से लड़के
लगे और उन्होंने
उस भारी लकड़ी
को लुढ़कना
और ठेलना प्रारम्भ
किया | सबने लगकर
वह लकड़ी उन
दोनों भाइयो के
घर पहुंचा दी
| उन लड़को की
माता ने अपने
पुत्रों के साथ
आये लड़को को
मिठाई दी और
कहा - बच्चो ! मेल
में बहुत बल होता
हैं | तुम लोग
मिलकर कठिन - से
- कठिन कम कर
सकते हों | और
तुमलोग मिलकर रहोगे तो
कोई भी तुम्हारी
कोई हानि नहीं
कर सकेगा | आपस
में मिलकर रहने
से तुमलोग का
मन भी प्रसन्न
रहेगा और तुम्हारे
कम भी सरलता
से हों जाया
करेंगे |
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