You Can Read All Stories Here

Tuesday 24 October 2017

मेल का फल

अपने देश में ऐसे बहुत - से नगर  और  गांव हैं,जहाँ बहुत थोड़े पेड़ हैं | यदि वहां गायें - बैल भी कम हों और गोबर थोड़ा हों तो रसोई बनाने के लिये लकड़ी या उपले बड़ी कठिनाई से मिलते हैं |

एक छोटा - सा बाजार था | उस के आस - पास पेड़ कम थे और बाजार में किसानों के घर होने से गाय - बैल भी थोड़े थे | जलाने के लिये लकड़ी और उपले वहां के लोगों की खरीदना पड़ता था | दो दिन - तीन दिन वर्षा हुई थी, इसी से गाँवो से कोई मजदूर बाजार में लकड़ी या उपला बेचने नहीं आया था | इससे कई घरों में रसोई बनाने को ईंधन ही नहीं बचा था |

उस गावं के दो लड़के, जो सगे भाई थे, अपने घर के लिये सूखी लकड़ी ढूंढ़ने निकले | उनके पिता घर पर नहीं थे | उनकी माता बिना सूखी लकड़ी के कैसे रोटी बनाती और कैसे अपने लड़को को खिलाती | दोनों लड़के अपने माता पिता के लगाये आम के पेड़ के नीचे गए | वहां उन्होंने देखा कि आम की एक मोटी सूखी डाल आंधी से टूटकर नीचे गिरी हैं | बड़े लड़के ने कहा -लकड़ी तो मिल गयी, लेकिन हम लोग इसे कैसे ले जायेंगे ?' छोटे ने कहा - हम इसे छोड़कर जायेंगे तो कोई दूसरा उठा ले जायेगा | लेकिन वे क्या करते | बड़ा भाई दस वर्ष का था और और साढ़े आठ वर्ष का | इतनी बड़ी लकड़ी उनसे उठ नहीं सकती थी | इतने में छोटे लड़के ने देखा की सूखी लकड़ी से गिरे एक मोटे बड़े सफ़ेद कीड़े को, जो की मर गया हैं, बहुत - सी चीटियां उठाये लिये जा रही हैं | छोटा लड़का चिल्लाया - भैया ! यह क्या हैं | बड़े ने - 'ये तो चींटिया कीड़े को ले जा रही हैं | छोटा भाई बोला - इतनी छोटी चींटिया कीड़े को कैसे ले जा रही हैं | बड़े भाई ने कहा - देखो तो कितनी चींटिया हैं | ये सब मिलकर इस कीड़े को ले जाती हैं | बहुत सी चींटिया मिलकर तो मरे हुए सांप को भी घसीट कर ले जाती हैं | चींटिया कीड़े को धीरे - धीरे खिसका रही थी | कीड़ा मोटा था | वह बार - बार लुढ़क पड़ता था | कभी - कभी दस - पांच चींटिया उसके नीचे दब भी जाती थी | लेकिन दूसरी चींटिया उस कीड़े को हिलाकर झट दबी चींटियों को निकल देती थी | काली - काली  छोटी चींटिया थकने का नाम ही नहीं ले रही थी | लड़को के देखते - देखते वे कीड़े को दूर तक धीरे - धीरे सरका कर ले गयी | छोटा लड़का तो प्रसन्न हों गया | उसने ताली बजाई और कूदने लगे | फिर वह आम से गिरी सूखी लकड़ी पर जाकर बैठ गया और बोला - भैया ! हमलोग क्या चींटियों से भी गए - बीते हैं | तू जाकर अपने मित्रों को बुला लो | मैं यहाँ बैठता हूँ | हम सब लड़के मिलकर लकड़ी उठा ले जाएंगे | बड़ा लड़का बाजार में गया और अपने मित्रों को बुला लाया | बहुत से लड़के लगे और उन्होंने उस भारी लकड़ी को  लुढ़कना और ठेलना प्रारम्भ किया | सबने लगकर वह लकड़ी उन दोनों भाइयो के घर पहुंचा दी | उन लड़को की माता ने अपने पुत्रों के साथ आये लड़को को मिठाई दी और कहा - बच्चो ! मेल में बहुत  बल होता हैं | तुम लोग मिलकर कठिन - से - कठिन कम कर सकते हों | और तुमलोग मिलकर रहोगे तो कोई भी तुम्हारी कोई हानि नहीं कर सकेगा | आपस में मिलकर रहने से तुमलोग का मन भी प्रसन्न रहेगा और तुम्हारे कम भी सरलता से हों जाया करेंगे |

0 comments:

Post a Comment

Social Profiles

Twitter Facebook Google Plus LinkedIn RSS Feed Email Pinterest

Popular Posts

Blog Archive

You Can Read All Stories Here

Powered by Blogger.

Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

BTemplates.com

Blogroll

About

Copyright © Best Collection of Hindi Stories | Powered by Blogger
Design by Lizard Themes | Blogger Theme by Lasantha - PremiumBloggerTemplates.com