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Tuesday 24 October 2017

भूल का फल

रात में वर्षा हुई थी | सबेरे रोज से अधिक चमकीली धूप निकली | बकरी के बच्चे ने माँ का दूध पिया,भर पेट पिया | फिर घास सूंघकर फुदका | गीली नम भूमि पर उसे कूदने में बड़ा मजा आया और वह चौकडिया भरने लगा | पहले माता के समीप उछलता रहा और फिर जब कानो में वायु भर गयी तो दूर की सूझी |

माँ ने कहा - ' बेटा! दूर मत जा | कहीं जंगल में भटक जायेगा |' वह थोड़ी दूर निकल गया था | उसने वही से कह दिया -'मैं थोड़ी देर में खेल -कूदकर लौट आऊंगा | तू मेरी चिंता मत कर | मैं रास्ता नहीं भूलूंगा | माता मना करती रही, लेकिन  वह तो दूर जा चुका था और माता के मना करने पर उसे झुंझलाहट भी आयी थी | वह कूदने में मस्त था | चौकड़ी लगाने में उसे रास्ते का पता ही नहीं रहा | उसने जंगल को देखा और यह सोचकर कि थोड़ी दूर तक आज जंगल भी देख लूँ, आगे बढ़ गया | सचमुच  वह जंगल में भटक गया और इसका पता उसे तब लगा, जब वह कूदते-उछलते थक गया | जब उसने लौटना चाहा तो उसे रास्ते का पता ही नहीं था | वह कंटीली घनी झाड़ियों के बीच रास्ता ढूंढ़ने के लिये भटकता ही रहा | अरे तू तो बहुत अच्छा आया | मुझे तीन दिन से भोजन नहीं मिला है | पास की झाड़ी से एक बड़ा - सा भेड़िया यह कहते हुए निकल पड़ा |

बकरी के बच्चे को ने तो उत्तर देने का अवकाश मिला और रोने का | उसे केवल मन में अपने मालिक गड़रिये की एक बात स्मरण आयी -


                मातु पिता गुरु स्वामी सिख सिर धरि करहिं सुभाये |
                लहेउ लाभु तिहन जनम कर नतरु जनमु जग जाएं ||

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